अग्निजा - 114

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लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-114 भावना को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। सुबह केतकी ने कुछ नहीं कहा। उसने अपनी तैयारी की और स्कूल जाते समय आवश्यक हिदायतें दे दीं। भावना कोई जवाब देती, इससे पहले ही केतकी बाहर निकल गयी। भावना लगातार मैसेज देख रही थी, लेकिन उसे जिस मैसेज का इंतजार था, वह दिखाई नहीं दे रहा था। न प्रसन्न का, न उपाध्याय मैडम का। भावना का मन खिन्न हो गया। किसी से उम्मीद रखना ही बेकार है, निराशा ही हाथ लगती है। अचानक मोबाइल में एसएमएस अलर्ट रिंग बजी। ‘वाह, केतकी बहन का मैसेज।’कुछ भूल गयी