शहर की भीड़भाड़ के बीच कार मुख्य सड़क पर फर्राटे से भागी जा रही थी। शाम का धुंधलका फैल चुका था। नित्य की भाँति सूर्यदेव अपनी गति से गंतव्य की तरफ अग्रसर थे और उस जगह पहुँच गए थे जिसे क्षितिज कहा जाता है। साधना के ख्यालों में खोए कार में आगे की सीट पर बैठे गोपाल की नजरें कार के शीशे से पार बहुत दूर क्षितिज पर जाकर टिक गई थीं। एक क्षण को उसे ऐसा लगा 'जैसे सूर्य की उपस्थिति में धरती और आसमान का मिलन हो रहा हो और इस मिलन के अहसास से ही धरती और