उजाले की ओर –संस्मरण

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------------------------------------ सभी मित्रों को स्नेहिल नमस्कार कैसे हैं सब ? लीजिए इस वर्ष की होली भी आ गई | अब फिर जली होली उन लकड़ियों से जो घर-घर चंदा इकट्ठा करके पैसे जमा करके लाई जाती हैं | उत्साही युवक सोसाइटी के घर -घर जाते हैं, सिंहद्वार पर खड़े होकर लकड़ियाँ या फिर पैसे लेने के लिए पुकारते हैं, वैसे युवक तो आजकल शर्माने लगे हैं, उनका स्टेट्स डाउन होता है | अधिकतर छोटे बच्चे ही बंदरों की तरह ही उछल-कूद मचाते हुए पहुंचते हैं सिंहद्वार तक ! ये बच्चे किसी बड़े को लेकर साथ लेकर चलना चाहते हैं जिससे