खण्‍डकाव्‍य रत्‍नावली - 17

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श्री रामगोपाल ‘’भावुक’’  के ‘’रत्नाावली’’ कृति की भावनाओं से उत्प्रेरित हो उसको अंतर्राष्ट्री य संस्कृनत पत्रिका ‘’विश्वीभाषा’’ के विद्वान संपादक प्रवर पं. गुलाम दस्तोगीर अब्बानसअली विराजदार ने (रत्ना’वली) का संस्कृेत अनुवाद कर दिया। उसको बहुत सराहा गया।यह संयोग ही है, कि इस कृति के रचनयिता महानगरों की चकाचोंध से दूर आंचलिक क्षेत्र निवासी कवि श्री अनन्तगराम गुप्त् ने अपनी काव्यरधारा में किस तरह प्रवाहित किया, कुछ रेखांकित पंक्तियॉं दृष्ट‍व्यी हैं। खण्‍डकाव्‍य रत्‍नावली 17 खण्‍डकाव्‍य   श्री राम