खण्डकाव्य रत्नावली 9 श्री ररामगोपालभावुक के उपन्यास ‘’रत्नावली’’ का भावानुवाद रचयिता :- अनन्त राम गुप्त बल्ला का डेरा, झांसी रोड़ भवभूति नगर (डबरा) जि. ग्वालियर (म.प्र.) 475110 नवम अध्याय – रामाभैया दोहा – जन जन की यह रीति है, अपना जैसा जान। निज कमजोरी की तरह, जग को लेता मान।। 1 ।। जैनी एक गांव में रहते। ज्वर से ग्रसित पुत्र हित जगते।। भली जान हरको बुलवायो। दो दिन जागी उन्है सुवायो।। तीजे दिन रतना गृह आई। पूछी का गायब रहि भाई।। दूजे का दुख सह नहिं पाती। आय बुलावा व