खण्डकाव्य रत्नावली 2 खण्डकाव्य रामगोपाल भावुक की कृति ‘’रत्नावली’’ का भावानुवाद रचयिता :- अनन्त राम गुप्त बल्ला का डेरा, झांसी रोड़ भवभूति नगर (डबरा) जि. ग्वालियर (म.प्र.) 475110 द्वितीय अध्याय – तारापति दोहा – कितने दिन के गये तुम, सुधि नहिं लीनी नाथ। मेरी तो जैसी रही, तारा की भी साथ।। 1 ।। नहिं तुमसा निर्मोही पेखा। बच्चे का भी सुख नहिं देखा।। नारी जीवन – बेल समाना। बिना सहारे नहिं चढ़ पाना।। जीवन दुरलभ प्रकृति बनाया। कहैं विचित्र दैव की माया।। बचपन मात पिता की छ