गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 37

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भाग 36 जीवन सूत्र 40,41जीवन सूत्र 40 प्रेम और कर्म में संतुलन है आवश्यकगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है: -यः सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम् ।नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठित।।2/57।।इसका अर्थ है, हे अर्जुन!जो सर्वत्र स्नेहरहित हुआ,उन शुभ या अशुभ वस्तुको प्राप्त होकर न प्रसन्न होता है और न द्वेष करता है,उसकी बुद्धि स्थिर है।स्थितप्रज्ञ मनुष्य के अन्य लक्षणों पर प्रकाश डालते हुए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जिस मनुष्य की बुद्धि स्थिर हो जाती है ,वह चहुंओर अतिरेक स्नेह की भावना से रहित हो जाता है। जिन वस्तुओं या अभीष्ट की प्राप्ति को वह शुभ मानता है, उनके मिलने