झोपड़ी - 4 - बेसहारा लोग

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मेरा सब कुछ ठीक चल रहा था। दादाजी भी स्वस्थ और हट्टे- कट्टे थे। अभी लगता था 20- 25 साल और उन्हें यमराज भी नहीं हिला सकता है। मेरे गांव वाले भी सभी खुश और प्रसन्न थे। सब अपने काम को अच्छे ढंग से निपटाते और सुबह- शाम योगासन और भगवान की आराधना करते। सात्विक रूप में गांव की दिनचर्या चल रही थी। सभी गांव वाली हट्टे -कट्टे और निरोग थे। तभी एक समस्या उत्पन्न हो गई। दूर के कई गांवों में बिना बारिश के सूखा पड़ गया और वहां लोग मरने लगे। कोई इधर भागा, कोई उधर भागा। शरणार्थियों