विश्वास - कहानी दो दोस्तों की - 24

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विश्वास (भाग -24)"उमा जी यह तो बहुत ज्यादा है, आप हमारे मेहमान हैं। आप से कैसे ले सकते हैं"? उमा जी--- "भाई साहब ये मैं स्कूल के लिए दे रही हूँ। आप लोग इतना नेक काम कर रगे हैं तो हम भी इसकी भागीदार बनना चाहती हैं, प्लीज आप मना मत कीजिए"।सर --- " अब आगे मैं क्या कहूँ बहन जी, आप जैसी कहें"।उमा जी-- "धन्यवाद भाई साहब"।टीना -- थैंक्यू सर। चलो दादी बाहर सब इंतजार कर रहे हैं।भुवन और उसकी मम्मी उनका इंतजार कर रहे थे।"माँ जी कैसा लगा आपको बच्चों का सपना"। बहुत ही अच्छा और नेक सपना