“जिन चैतन्य महाप्रभु ने उत्कृष्ट और परम उज्ज्वल रसमयी भक्ति सम्पत्ति वितरण के लिये कलियुग में कृपापूर्वक अवतार लिया है। वे स्वर्ण कान्तिवाले शचीनन्दन हरि हमारे हृदय में स्फूर्ति-लाभ करें।” —विदग्ध माघवमहाप्रभु चैतन्य देव अभिनव कृष्ण मध्यकालीन भारत की परम दिव्य विभूति थे, कृष्ण भक्ति के कल्पवृक्ष थे। उन्होंने असंख्य प्राणियों को हरिनाम संकीर्तन-सुधा से प्रमत्त कर भवसागर की उत्ताल तरंगों से पार कर भक्ति प्रदान की। नीलाचल-पुरीधाम उनके पुण्य और दिव्य ऐश्वर्य से वृन्दावन में रूपान्तरित हो गया। बड़े-बड़े सन्त महात्मा, विद्वान, वेदान्ती, शास्त्र महारथी तथा ऐश्वर्यशाली शासको और महापुरुषो ने उनकी चरणधूलि से अपने मस्तक का श्रृंगार कर