छुटकी दीदी - 13

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- 13 - सब शीतकालीन अवकाश की प्रतीक्षा कर रहे थे। सलोनी ने सुकांत बाबू से मिलने के लिए टिकट बनवा ली। बाड़ी की रजिस्ट्री भी होनी थी। नानी से अधिक सुकांत बाबू सलोनी की प्रतीक्षा कर रहे थे। आख़िर वह दिन भी आ गया और सलोनी ट्रेन में बैठकर कोलकाता चली गई। आधी से अधिक बाड़ी ख़ाली हो गई थी। सुकांत बाबू ने अपना फ़्लैट भी ख़ाली करा लिया था। यहाँ तो वे लोग इसलिए रहते थे कि उनके पिताजी का पास की मार्केट में व्यवसाय था। इसके अतिरिक्त यहाँ के लोगों से इतना प्यार हो गया था कि