आकाश में पक्षियों के झुंड को उड़ते देखना किसके मन को नहीं भाएगा, लेकिन उसकी आंखों में पता नहीं क्यों एक उदासी छायी हुई थी...। वह छत के एक कोने में दीवार का सहारा लिए, भाव शून्य सी सिर्फ उड़ती चिड़ियों को निहारे जा रही थी। नीचे खड़े दादा जी की आवाज भी मानो उसके कानों तक नहीं पहुंच पा रही थी...या वह उसे सुनकर भी अनसुना कर रही थी। शुभी, शुभी पुकारते पुकारते थक चुके दादा जी को अचानक गोपी दिखाई दिया। उन्होंने उसे छत पर खड़ी शुभी को आवाज लगाने को कहा...। ‘आप क्यों नहीं बुला लेते