दोस्तों आप इसे कविता कह लीजिए या कहानी कह लीजिए। लगभग पिछले पाँच से महीनों से ये रचना काफी बार घूमती घूमती मुजे इंटरनेट पे मिली है। लेखक अज्ञात है। पर हर बार ये लब्ज मेरे दिल और दिमाग को हिला कर रख देते है। मोहल्ले की औरते कन्या पूजन के लिए तैयार थी, मिली नहीं कोई लड़की, उन्होंने हार अपनी मान ली। फिर किसीने बताया, अपने मोहल्ले के है बाहरजी, बारह बेटियों के बाप, है सरदार जी। सुनकर उसकी बात, हस कर मैंने कह दिया, बेटे के चक्कर में सरदार, बेटियाँ बारह कर बैठ गया। पड़ोसियों को साथ लेकर,