[देवताओं में घबड़ाहट, विष्णुभगवान् द्वारा आश्वासन-प्रदान]प्रह्लाद पुनः गुरुकुल में अध्ययन करने लगे और इधर दैत्यराज कठोर शासन करने लगा। यों तो दैत्यराज हिरण्यकशिपु के हृदय से भगवान विष्णु का वैरभाव एक क्षण के लिये भी दूर नहीं होता था, किन्तु जब से प्रह्लादजी के मुख से उसने भगवान विष्णु की स्तुति सुनी तब से तो मानों उसके वैराग्नि में घी की आहुति पड़ गयी। उसने अपने असुर अधिकारियों द्वारा सर्वत्र बड़े जोरों से उत्पात मचा दिया। देवताओं की तो जो दुरवस्था की सो की ही, उन मनुष्यों की भी नाक में दम कर दी, जिन पर नाममात्र को भी विष्णुपक्षी