परम भागवत प्रह्लाद जी - भाग10 - हिरण्यकशिपु को वर प्राप्ति

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[प्रह्लाद का आविर्भाव, देवताओं में खलबली]धीरे-धीरे दैत्यराज हिरण्यकशिपु की तपस्या पूरी हुई और उसके समीप दक्ष, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु आदि अपने मानस पुत्रों के सहित जगत्स्रष्टा ब्रह्माजी जा पहुँचे। (पद्मपुराण उत्तरखण्ड अध्याय ९३ के अनुसार हिरण्यकशिपु ने शिवजी के पञ्चाक्षर मन्त्र का जप किया था और शिवजी ने ही वर प्रदान किया था, किन्तु अधिकांश पुराणों में ब्रह्माजी के द्वारा वरप्राप्ति की कथा है। सम्भवतः शिवजी के वरदान की कथा कल्पान्तर की कथा है।) हिरण्यकशिपु का शरीर हड्डियों की ठठरीमात्र रह गया था और उसके ऊपर भी दीमक लग गये थे। ब्रह्माजी ने कहा, “हे कश्यपनन्दन! तुम्हारी तपस्या पूरी हो