गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 32

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भाग 31: जीवन सूत्र 33:पहले जो है उसे स्वीकारें, फिर आगे बढ़ें जीवन सूत्र 34: कर्मफल पर दृष्टि जमाए रखना है लोभ जीवन सूत्र 33:पहले जो है उसे स्वीकारें, फिर आगे बढ़ें गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है:- योगस्थ: कुरु कर्माणि संग त्यक्तवा धनंजय। सिद्धय-सिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।(2/48) अर्थात हे धनंजय(अर्जुन) ! तू आसक्तिका त्याग करके सिद्धि-असिद्धि में समभाव रखते हुए योग में स्थिर रहता हुआ कर्मोंको कर।समत्व को ही योग कहा जाता है। समत्व अर्थात कार्य करते चलें।इनका फल मिले, न मिले ;इन्हें समान भाव से लेना। मनुष्य अपने जीवन में इतना अधिक लक्ष्य केंद्रित हो जाता