गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 31

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भाग 30 जीवन सूत्र 32 फल मिले तो ठीक, न मिले तो सब कुछ नष्ट नहीं गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।। इसका अर्थ है:-तेरा अधिकार कर्म करनेमें ही है, इससे प्राप्त होने वाले फल में कभी नहीं। अतः तू कर्मफल का कारण भी मत बन और तेरी अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो। वास्तव में मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने में है। मनुष्य एक क्षण भी बिना कर्म के नहीं रह सकता। केवल शारीरिक उद्यम करना और कुछ न कुछ करते रहना ही कर्म नहीं है। मानसिक स्तर पर