संतो और महात्माओ की महिमा का बखान करना बड़े सौभाग्य और परम पूण्य की बात है। संत नागा निरंकारी परम अवधूत थे। उन्होंने लोक-लोकान्तरों के आत्मरहस्य को जन्म-जन्मांतर से समझा था। प्रत्येक लोक में अपनी महती साधना-शक्ति के द्वारा वे निर्विरोध आ-जा सकते थे, यह उनके चरित्र-वैचित्र्य के संबंध में अतिशयोक्ति नही बल्कि वास्तविकता है। नागा निरंकारी के अनुयायियों में यह मान्यता है कि वे महाभारतकालीन दिव्य जन्मधारी परमदानी महात्मा कर्ण के अवतार थे, इस मान्यता की परिपुष्टि उनके (नागा निरंकारी महाराज के) उद्गार से भी होती है, समय-समय पर उन्होंने बड़े ऐतिहासिक और अधिकारपूर्ण ढंग से इस रहस्य की