चोखामेंळा महार जाति के थे और मंगलवेढा नामक स्थान में रहते थे। बस्ती से मरे हुए जानवर उठा ले जाना ही इनका धंधा था। बचपन से ही ये बड़े सरल और धर्मभीरु थे। श्रीविठ्ठल जी के दर्शनों के लिये बीच-बीच मे ये पंढरपुर (महाराष्ट्र) जाया करते थे। पंढरपुर में इन्होंने नामदेव जी के कीर्तन सुने। यहीं उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई। नामदेव जी को इन्होंने अपना गुरु माना था। अपने सब काम करते हुए ये भगवन्नाम में रत रहने लगे। इन पर बड़े-बड़े संकट आये, पर भगवन्नाम के प्रताप से ये संकटो के ऊपर ही उठते गये। पंढरपुर के श्रीविठ्ठल मंदिर का