वो कौन था--अन्तिम भाग

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इधर कभी लोग रहमत माई को भड़काते और वो ख़ुदा का कहर बन जाती। न अच्छी तरह सुन न देख पाए, न हाथ-पैरों पर काबू। एकदम गाली-गलौच पर उतर आई कि बौखला कर ठाकुर साहब उसे एक के बजाय दोनों बच्चे दे देने पर राजी हो जाते।लेकिन जब वो भी मुतमइन (आश्वस्त) न हो पाती कि अपना नवासा ही मिल रहा है तो गुस्से और झुंझलाहट में आकर चौखट पर माथा फोड़ने लगती, "अल्लाह रसूल का वास्ता मेरा नवासा मुझे दे दो!” वो घिघियाती तो सबके कलेजे मोम हो जाते।ऐसा भी होता कि लोगों का ध्यान किसी दूसरे गर्मागर्म हादिसे