परम भागवत प्रह्लादजी -भाग6 - भ्रातृ-वध से व्याकुलता

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[तपोभूमि की यात्रा]जब से हिरण्याक्ष को वाराह भगवान् ने मारा, तब से हिरण्यकश्यपु का चित्त कभी शान्त नहीं रहा। यद्यपि वह राजकाज करता था, खाता-पीता था और यथा-शक्ति सभी कार्य करता था, तथापि चिन्तितभाव से,निश्चिन्त होकर नहीं। उसको रात-दिन यही चिन्ता घेरे रहती थी कि हम अपने भाई का बदला कैसे लें? और विष्णु भगवान् तथा उनके नाम निशान को संसार से कैसे मिटा दें? उसने अपने राज्य में आज्ञा दे रखी थी कि, हमारे राज्य में कोई विष्णु की पूजा न करे। उनके मन्दिर न बनवावे और जो मन्दिर कहीं भी हों, उनको नष्ट-भ्रष्ट करके उनके स्थान में भगवान्