परम् वैष्णव देवर्षि नारद - भाग 10

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दोपहर के पश्चात् का समय था। महाभारत के रचयितावेदव्यास जी ब्रह्म नदी के तट पर बड़े ही उदास, बड़े ही खिन्न बैठे हुए थे। नदी कल-कल स्वरों से बह रही थी। सामने पर्वत की चोटी पर बिछी हुई बर्फ के ऊपर सूर्य की सुनहरी किरणें खेल रही थी। पर्वत के नीचे वृक्षों पर कल-कंठों से पक्षी गा रहे थे, पर वेदव्यास जी के लिए प्रकृति का वह वैभव बिल्कुल निस्सार था। वे उदास मुख, विचारों में खोए हुए थे। वेदव्यास जी अपने भीतर घुसकर अपनी उदासी का कारण खोज रहे थे। वे सोच रहे थे, उनकी तो किसी में कोई