कैक्टस के जंगल - भाग 18

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18 क्या करूं देशभक्ति का ? दफ्तर में पेन्शन बाबू की खिड़की के सामने लम्बी लाइन लगी हुई थी। आज छः तारीख थी। प्रतिमाह छः तारीख को पेन्शन भोगियों को पेन्शन मिलती थी, इसलिए लोग नौ बजे से ही जमा थे। मास्टर किशोरी लाल ने एक नजर खिड़की के सामने लगी लम्बी लाइन पर डाली। वे मन ही मन कुछ बुदबुदाए और फिर चुपचाप लाइन में जाकर खड़े हो गए। उनसे आगे लाइन में तीस-चालीस आदमी और खड़े हुए थे। दस बजे दफ्तर खुल गया परन्तु पेन्शन बाबू गुलाठी साढ़े दस बजे अपने केबिन में तशरीफ लाए। वे आकर अपनी