प्रदीप श्रीवास्तव भाग 3 मैं बड़ी कोशिश करके भी, अपनी दृष्टि उसके स्तनों पर से हटा नहीं पा रहा था. दूध की धार निकाल कर, उसने एक नजर मेरी आंखों में देखा, कुछ इस भाव से कि, अब बताओ, मैंने ठीक कहा कि नहीं. वह बच्चे को फिर से दुलारने लगी. लेकिन स्तन को कुर्ती में वापस नहीं ढंका. वे खुले ही रहे. वह बच्चे के साथ खेलती रही, निरर्थक बातें भी बोलती रही. इसी बीच गाड़ी धीमी होने लगी. मैं अंदर ही अंदर बहुत तेज़ उबलना शुरू हो गया था. मन में डरावने काले बादलों का भयानक तूफ़ान उठ