अनसुनी यात्राओं की नायिकाएं - भाग 2

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प्रदीप श्रीवास्तव भाग 2 ट्रेन चल दी थी, चाय वाला उस गति से आगे नहीं आ पाया. उसके हाथ में चाय की केतली, बांस की डोलची थी, जिसमें डिस्पोजल कप, कुल्हड़ दोनों ही थे. मैंने मन में कहा कोई बात नहीं, इस समय चाय की ज्यादा जरूरत है.... '' अर्थात एक बार फिर आपके साथ अच्छा नहीं हुआ.'' '' हाँ, कह सकते हैं, क्योंकि वह एक चाय मुझे पचास रुपये की पड़ी. चाय जब खत्म की तो सोचा, देखूं तीनों परिवार हैं कि गएँ. जाकर देखा तो वहां कोई नहीं था. मन ही मन कहा कि, हद हो गई, इतने