(उपन्यास) प्रदीप श्रीवास्तव **** समर्पित पूज्य पिता ब्रह्मलीन प्रेम मोहन श्रीवास्तव जी एवं प्रिय अनुज ब्रह्मलीन प्रमोद कुमार श्रीवास्तव, सत्येंद्र श्रीवास्तव की स्मृतिओं को ****** भाग 1 ढेरों रंग-गुलाल से भरी होली एकदम सामने अठखेलियां करने लगी थी. फाल्गुन में फगुनहट जोर-शोर से बह रही थी. पेशे से तेज़-तर्रार वकील, मेरे एक पारिवारिक मित्र 'दरभंगा' से वापस 'लखनऊ' आ रहे थे. इस यात्रा के दौरान ट्रेन में उनके साथ बड़ी ही अजीब घटना हुई. ऐसी कि परिवार नष्ट होते-होते बचा. परिवार के सकुशल बच जाने का पूरा श्रेय वो ईश्वर और अपनी ब्रॉड माइंडेड पत्नी को देते हैं. यह अक्षरश: