अरूण और पाखी की नोंक झोंक :पाखी जो अरूण की कॉफी बना रही थीं और खुद में ही बड़बड़ाते हुए कहती है, "बस अब यही काम करना रह गया कॉफी बनाओ और इस लंगूर को पिलाओ जैसे वे खुद है वैसी ही कॉफी पीते है कड़वी मुंह बनाते हुए पाखी कहे जा रही थीं",,, पाखी की दिल की धड़कन बढ़ जाती है, वो मन में ही कहती है, "इस लंगूर का दिमाग खराब हो गया है क्या"? इस लंगूर ने हमारा दुपट्टा क्यों पकड़ लिया है, पाखी एक बार फिर कोशिश करती है आगे बढ़ने की दुपट्टे के खींचने के