पहले तो जया इस बात को नहीं समझ पाई कि उसका पति क्यों रात को उसके करीब आने से बचता है? क्यों दिन भर उसका व्यवहार ठीक रहता है, पर शाम ढलते ही किसी न किसी बात पर लड़ना शुरु कर देता है। वह तो खुद के प्रति ही हीन-भावना से भरने लगी थी। बार-बार शीशे में अपना चेहरा देखती और रोती। एक दिन वह उससे पूछ ही बैठी-‘मुझमें क्या कमी है?’ वह अकड़ कर बोला-‘क्या चाहती है, बैठकर तुम्हारा मुँह निहारता रहूँ... इतना नामर्द नहीं हूँ।’ जया सोचती रही कि यह कैसा मर्द है, जिसकी पत्नी रात भर जल