[अंतिम एपीसोड] "मिशिका !प्लीज़ ! बात करो न। " [ नीलम कुलश्रेष्ठ ] बच्चों को तो मज़े आ गये छुट्टियों के लेकिन बीस पच्चीस दिन बाद समझ में आया कि ये छुट्टियां नहीं हैं, कैद है। बड़े लोग भी घर में बंद लैप टॉप खोले उन्हें अपने कमरों से भगाते रहते हैं, झिड़क देते हैं, "ऑफ़िस का काम करने दो। " "आप ऑफ़िस क्यों नहीं जा रहे? " "कोरोना फ़ैल रहा है तो कैसे जाएँ ? बॉस ने कहा है कि घर से ऑफ़िस काम करो। " हर कमरे में भटकती, टीवी देख कर बोर हुई मिशिका बहुत ऊबी रहती