लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-105 केतकी और यशोदा दरवाजे तक पहुंची ही थीं कि भावना उनके पीछे दौड़ी। ये देख कर शांति बहन बोलीं, ‘ए लड़की, तू मेरे पास आ। तेरा पीछा छूटा उनसे...’ यशोदा भी भावना को घर के भीतर ठेलने लगी, लेकिन भावना दृढ़ थी। ‘मैं भी मां और केतकी बहन के साथ जाऊंगी...’ शांति बहन ने अपने गुस्से पर काबू करते हुए उसे समझाने की कोशिश की, ‘अरे पगली, ये तेरा घर है, तेरा अपना...’ ‘घर? घर ऐसा होता है क्या? और इस घर में तो प्रेम, दया, माया, सहानुभूति रहनी चाहिए न....मुझे तो ये सब कभी दिखा