यादों के कारवां में: अध्याय 4 (9) ध्रुव तारे से अटल आषाढ़ की इस ढलती अँधेरी शाम और गहराती निशा के बीच आसमान में छाए हैं हर कहीं गहरे काले बादल और बारिश की आंख-मिचौली के बीच क्षितिज में जैसे चांद भी है छिपा, दुबका हुआ सा और तभी फूट पड़ती है उजाले की एक रेख आसमान के किसी कोने से और दूर हो जाता है मेरे अंतर्मन का समूचा तम कि घोर निराशा और घोर अंधियारे के बीच भी है आशा की यह एक किरण और इसने भर दिया है मेरे पूरी अस्तित्व को एक दिव्य रोशनी से और