इश्क़ ए बिस्मिल - 64

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हदीद के बढ़ते क़दम वही पे थम गए थे। उसे ज़मान ख़ान की तरफ़ मुड़ कर देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी। “ये नाश्ता अधूरा छोड़ कर क्यों जा रहे हो?” ज़मान खान ने रोबदार आवाज़ में कहा था। उनकी बात सुनते ही हदीद की रुकी हुई साँसे बहाल हुई थी। “मैच प्रैक्टिस है... मैं लेट हो रहा हूँ।“ उसने बोहत धीमे लहज़े में कहा था। “कोई लेट नहीं हो रहा... नाश्ता कर के जाओ।“ उन्होंने अपना हुक्म सुनाया था... हदीद को उनकी बात माननी पड़ी थी। हदीद एक नज़र अज़ीन पर डाल कर वापस से कुर्सी पर बैठ