हमने दिल दे दिया - अंक ३२

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अंक ३२. दाव-पेच     दुसरे दिन सुबह | सुबह के लगभग लगभग ११ बज रहे थे और मानसिंह जादवा आज अपने घर पर ही थे और अपने बैठक रूम में बैठकर टेलीवीजन का लुप्त उठा रहे थे तभी अचानक उनके घर वनराज सिंह आते है और सीधा बैठक रूम में पहुचते है |     जादवा साहब आ सकता हु ...वनराज सिंह ने कहा |     अरे आओ आओ वनराज सिंह बैठो बैठो भाई ...मानसिंह जादवा ने वनराज सिंह को बैठने के लिए कहा |     जी धन्यवाद और जय माताजी ...वनराज सिंह ने कहा |     जय माताजी ...अरे