लाज लुटा देने के पश्चात किरण दीपक पर और भी अधिक जी-जान से निछावर हो गयी। पहले से भी अधिक वह उसको प्यार करने लगी। इतना अधिक कि दीपक के खयालों में वह प्लूटो को भी भूलने लगी, और भूलना अब स्वाभाविक भी था। एक औरत, जिसने प्यार किसी अन्य से किया हो- दिल कहीं अन्यत्र दे बैठी हो, परन्तु उसका कौमार्य किसी दूसरे की भेंट चढ़ चुका हो, तो ये बहुत स्वाभाविक भी हो जाता है कि वह उसी को अपना भगवान, अपने दिल का देवता समझने लगती है, जिसके साथ वह एक हो लेती है। यही किरण का