ममता की परीक्षा - 129

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अचानक गोपाल उठ खड़ा हुआ और जमनादास का हाथ पकड़कर उसे भी उठने का इशारा करते हुए कहने लगा, "चल मेरे यार ! अब और देर न कर। मुझे मेरी साधना के पास ले चल। अब एक पल की देरी भी सहन नहीं हो रही।"" कहते हुए वह फिर से फफक पड़ा।जमनादास सोफे पर बैठे बैठे ही बोला, "मुझ पर यकीन रख मेरे दोस्त ! मैं भी जल्द से जल्द तुम दोनों को एक दूसरे से मिलवाकर अपने गुनाहों का प्रायश्चित कर लेना चाहता हूँ, लेकिन उससे पहले तुझे मेरा एक छोटा सा काम करना होगा।.. बोल कर पाएगा ?"तड़प