आगे की कहानी... उस समय तो मुझे जान पड़ा कि मेरी मर्दानगी को बट्टा लगा और मैंने चाहा कि धरती जगह दे तो मैं उसमे समा जाऊँ। पर इस तरह बचने के लिए मैंने सदा ही भगवान का आभार माना है। मेरे जीवन में ऐसे ही दूसरे चार प्रसंग और आए हैं। कहना होगा कि उनमें से अनेकों में, अपने प्रयत्न के बिना, केवल परिस्थिति के कारण मैं बचा हूँ। विशुद्ध दृष्टि से तो इल प्रसंगों में मेरा पतन ही माना जाएगा। चूँकि विषय की इच्छा की, इसलिए मैं उसे भोग ही चुका। फिर भी लौकिक दृष्टि से, इच्छा करने