इश्क़ ए बिस्मिल - 57

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जाने क्यों इतनी शिद्दत की तकलीफ़ सहने के बावजूद उसके आँखों से एक क़तरा आँसू नहीं निकला था। हाँ इतना ज़रूर हुआ था की आगे उसकी हिम्मत नहीं बढ़ी थी की ऐसे कुछ और तस्वीरें देखती। उसने सारे फोटोज़ वापस से envalope में डाले थे। मन बोहत भारी हो रहा था मगर फिर भी वह हदीद के दिए हुए काम को दिलो जान से सर अंजाम दे रही थी। थोड़ी देर की और कोशिशों के बाद उसके हाथ wardrobe की चाभी का गुच्छा उसके हाथ लग गया था। एक के बाद दूसरी सारी drawers उसने खोल कर देखी थी और