मेरे नाम में क्या गुनाह है मैं कोई दावा नहीं करता कि मैं कोई कहानीकार हूँ, कहानी लिखना और कहना एक कला है, ठीक वैसी ही कला जैसे कोई चित्रकार कूची से रंग भरता है और पेंटिंग को जीवंत कर देता है। कुछ घटनाएँ मस्तिष्क को इतना उद्वेलित कर देती हैं कि खुद ब खुद कहानी की शक्ल अख़्तियार कर लेती हैं। अब मेरे पात्र सुकुमार को ही देख लीजिये, सुकुमार ने बीस साल पहले प्रेम किया था, टूटकर चाहते थे आकृति को, आकृति भी तो उन्हें दिलोजान से चाहती थी, प्रेम क्या था- भावी जीवन के सपने थे