बिटिया कहानी / शरोवन *** ‘जीवन के रास्ते चलने वालों को कहॉ से कहॉ पहुंचा सकते हैं? इसकी पहले से कोई कल्पना भी नहीं कर पाता है। बदले की भावना में अंगार बना-बैठा मानव जब खुद एक दिन प्रायश्चित की आग में जलने लगता है, तब उसे एहसास होता है कि जल्दबाज़ी में उठाये हुये गलत कदमों का सबक कितना मंहगा पड़ जाता है। किसी को सन्तान सुख से वंचित कर देने में ही उसको दु:ख देना नहीं होता है बल्कि सन्तान के रहते हुए उसके सुखों की चिन्ता में जलना भी जीवन का सबसे बड़ा दु:ख होता है। चाहे