'हे ज्ञानियों के गुरु, राजाओं के महाराजा! आप ज्ञानदेव कहलाते हैं, इस महत्ता को मैं पामर क्या समझु। पैरों की जूती का पैरो में ही रहना ठीक है । ब्रह्मा आदि भी जब आप पर बलिहारी जाते है तब दूसरे आप की तुलना में कितना ठहरेंगे? . . . . . . मैं योग का घर नहीं जानता हूँ, इसलिये चरणों पर मस्तक रखता हूँ।' — संत तुकाराम जीज्ञानदेव मराठी सन्त-साहित्य क्षेत्र के सम्राट स्वीकार किये जा सकते है। उन्होने ज्ञान और भक्ति की एकता सिद्धि से भागवत धर्म की उपासना की। उनकी ज्ञानेश्वरी भागवत धर्म की अनुपम व्याख्या-निधि हैं।