अध्याय 7.पुनर्जन्म, पुनरावर्तन नहीं यात्रा का अगला चरणमाता के गर्भ में शयन करते हुये ऋषि वामदेव विचार करते हैं—‘‘अब मैं देवताओं के अनेक जन्मों को जान चुका हूं। जब तक मुझे तत्व ज्ञान नहीं मिला था, मैं संसार में पाप कर्मों से उसी तरह घिरा था, जिस तरह पक्षी को पिंजरे में बन्द कर दिया जाता है।’’ पूर्व-जन्मों का स्मरण करते हुए ऋषि वामदेव ने शरीर धारण किया और उन्नत कर्म करते हुए स्वर्ग को पहुंच गये।यह कथा ऐतरेयोपनिषद् के द्वितीय अध्याय के प्रथम खण्ड में है। शास्त्रकार इस अध्याय को पूर्व पीठिका में यह बताता है कि पिता के