मन का जीना ही सात चक्रों में होश अर्थात् जीवन का होना हैं और मन की अंतिम मृत्यु ही एक मात्र यथार्थ मुक्ति।होश का मन में वहाँ होना जहाँ भौतिक शारीरिक इच्छायें रखी हुयी हैं इस बात को बताता हैं कि ऊर्जा मूलाधार चक्र पर हैं।यदि भौतिक शरीरिक इच्छायें सक्रिय हैं अर्थात् मूलाधार चक्र में सक्रियता हैं।यदि भौतिक शरीरिक इच्छायें असंतुलित हैं अर्थात् मूलाधार चक्र में असंतुलितता हैं।यदि भौतिक शरीरिक इच्छायें संतुलित हैं अर्थात् मूलाधार चक्र में संतुलितता हैं। होश का मन में वहाँ होना जहाँ भावनात्म शारीरिक इच्छायें रखी हुयी हैं इस बात को बताता हैं कि ऊर्जा स्वाधिष्ठान