अंशिता को यह भी पता था कि अंजलि ने उसे बड़ा करने में अपनी पूरी ज़िंदगी खपा दी। अपनी ख़ुद की माँ के साथ बिताया एक भी पल अंशिता को याद नहीं था; लेकिन अंजलि के साथ बिताया हर पल उसके ज़ेहन में अंकित था। बड़ी होकर वह भली-भांति यह समझती थी कि अंजलि ने कितना बड़ा त्याग किया है। वह चाहतीं तो ख़ुद भी माँ बन सकती थीं, अपने ख़ुद के बच्चे की माँ, उनका अपना खून; लेकिन बच्चे को जन्म देने का सुख उसके कारण ही उन्हें नहीं मिल पाया। उसका जीवन तो अंजलि ने एक लहलहाते वृक्ष