प्रेमशास्त्र - (भाग-२)

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शाम का सूरज श्रीकृष्ण की आँखों में दहक रहा था । श्रीकृष्ण के नेत्रों में आँसू ठहरे हुए जल की तरह थे । जब उनके कमल रूपी नेत्रों पर ढलते सूरज की मद्धम किरणें पड़ती तो ऐसा जान पड़ता जैसे कमल के पत्तो पर जल की बूंदे मोतियों की तरह झिलमिला रहीं हैं । शाम ख़त्म होने की कगार पर थीं । रात गहरा रहीं थीं , अंधकार के साथ ही श्रीकृष्ण का दुःख भी बढ़ता जा रहा था। आसमान ऐसा जान पड़ता था मानो धरती ने अब सितारों जड़ी धानी चुनरी ओढ़ ली हैं । टिमटिमाते तारे औऱ उनके