"मैं ये कहना चाहता था कि हम ठहरे गाँव वाले, भले पढ़े लिखे दरोगा बन गए लेकिन संस्कार तो हमें अपने ग्रामीण दादाजी और पिताजी से ही मिला है जिन्होंने हमें बहुत अच्छे संस्कार देते हुए जीवन के लिए आवश्यक नसीहतें भी सिखाई और समझाई थीं। बहुत सारी नसीहतों में से एक नसीहत यह भी थी कि 'चाहे जितना भी पुण्य मिलता हो, लेकिन हवन के नाम पर अपना हाथ कभी मत जलाना'। अब अगर आपको इसका मतलब समझ में आ गया हो तो आप जरूर समझ गए होंगे कि मैंने इस केस में आगे बढ़ने का निश्चय क्यों नहीं