घूँघट - (इस्मत चुगताई की कहानी)

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सफ़ेद चांदनी बिछे तख़्त पर बगुले के परों से ज़्यादा सफ़ेद बालों वाली दादी बिलकुल संगमरमर का भद्दा-सा ढेर मालूम होती थीं. जैसे उनके जिस्म में ख़ून की एक बूंद ना हो. उनकी हल्की सुरमई आंखों की पुतलियों तक पर सफ़ेदी रींग आई थी और जब वो अपनी बेनूर आंखें खोलतीं तो ऐसा मालूम होता, सब रौज़न बन्द हैं. खिड़कियां दबीज़ पर्दों के पीछे सहमी छिपी बैठी हैं. उन्हें देखकर आंखें चौंधियाने लगती थीं जैसे इर्द-गिर्द पिसी हुई चांदी का ग़ुबार मुअल्लक़ हो. सफ़ेद चिनगारियां-सी फूट रही हों. उनके चेहरे पर पाकीज़गी और दोशीज़गी का नूर था. अस्सी बरस की