किराएदार

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प्रिशा ने अपने बजट के हिसाब से सारे किराए के घर देख लिए । मगर उसे कोई भी घर सही नहीं लगा । अगर कहीं किराया कम है तो घर साफ सुथरा नहीं है । कहीं मकान मालिक की चिक-चिक इतनी है कि वो रह नहीं सकेगी । वह निराश होकर आजाद कॉलोनी की तरफ मुड़ गई । उसने सोचा कि जितने बड़े घर होंगे उतना ज्यादा किराया होगा । फ़िर भी कोशिश की जा सकती है । यही सोचकर उसने एक घर की घंटी बजा दी। "जी, मैं प्रिशा हूँ। किराए पर रहने के लिए घर ढूँढ रही हूँ