नीलम कुलश्रेष्ठ [ दुनिया के एक संवेदनशील व्यक्ति की तरह ये बात अब तक मुझे कचोटती रहती है कि क्यों नहीं एक एक मानस को रोटी मिल पाती ? लगभग बीस वर्ष की अपनी आयु में मैंने प्रथम लघुकथा' रोटी' लिखी थी और मैं सैंतालीस वर्ष बाद भी रोटी के आस पास घूमती 'मिशन मंगल 'लिख रहीं हूँ। मई सन २०१७ के 'नया ज्ञानोदय 'के अंक में शमशेर जी की कविता 'ये शाम'है '[मज़दूरों पर गोलियां ]पढ़कर हतप्रभ हूँ। बिलकुल वही दृश्य है जो मैंने सन १९६९-१९७० के बीच कल्पना की थी। इसी कविता के सन्दर्भ में लिखी कुछ पंक्तियाँ