प्रेमशास्त्र - (भाग-१)

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यमुना नदी के किनारें बसा - वृन्दावन नाम लेते ही ऐसा लगता जैसे जिव्हा पर शहद घुल गया हों। मिश्री सी मीठी यादें और उन यादों में माखन से नरम ह्रदय वालें प्यारे बृजवासी , फुलों सी कोमल राधा , नदियों सी निश्छल गोपियां , सागर से शांत नन्द बाबा , वात्सल्यमूर्ति माँ यशोदा औऱ कलकल बहती कालिंदी.... संध्या के समय अस्ताचल की ओर बढ़ते सूर्य को निहारते श्रीकृष्ण महल की छत पर उदास खड़े हुए हैं उनके मुख की दिशा वृदांवन की औऱ हैं । बृज की यादें श्रीकृष्ण को विकल कर देतीं हैं अपनों से बिछड़ने का स्मरण