जादुई मन - 8 - रूप साधना

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वेदव्यास जी अपने आश्रम मे अपने शिष्यों के साथ बैठे हुए थे । सभी शिष्य वेदव्यास जी को बड़े ध्यान से सुन रहे थे । एकाएक वेदव्यास जी ने अपने पास बैठे एक शिष्य से कहा – हे वत्स ! आप अपने आश्रम के द्वार पर जाइए वहां से गंगा पुत्र भीष्म को आदर के साथ ले आइए । यह सुन किसी भी शिष्य को आश्चर्य नही हुआ, अपितु सभी उत्सुकता से गंगापुत्र की प्रतीक्षा करने लगे । वेदव्यास जी ने वहां बैठे ही जान लिया कि गंगापुत्र मिलने आरहे हैं । यह कैसे संभव हुआ ? यह सब रूपसाधना